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Channel: अनुनाद
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विशाल श्रीवास्‍तव की नई कविता

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विशाल श्रीवास्‍तव युवा पीढ़ी के महत्‍वपूर्ण कवि हैं। कम लिखते हैं....कभी तो ये ख़ामोशी अखरने की हद तक जाती है...पर उनकी कविता का इंतज़ार रहता है। यहां हम उनकी नई कविता दे रहे हैं। इन दिनों फिलीस्‍तीन पर लगातार बमबारी और उससे हो रहा जनसंहार एक फिर ख़बर में है। अमरीका ने एशिया के छोर पर एक शैतान को अब स्‍थापित कर दिया है। ईसा मसीह की धरती निर्दोषों के रक्‍त में सनी है। दुनिया में मसीहाई के नए अवतार हमारे सामने हैं। इस परिदृश्‍य में विशाल की ये कविता बेहद ज़रूरी आक्रोश और भाषाई प्रतिहिंसा से भरी है, पर इसमें वैचारिक तनाव सधा हुआ है। इस कविता पर पाठकों की प्रतिक्रिया का अनुनाद को इंतज़ार है।




इज़राइल की तो ...

इस वीकेण्ड
जब दो विश्व शान्ति के नोबेल विजेता
आँखें मूँदे
रंगून में चूम रहे थे एक दूसरे को

लगभग उसी वक्त गाजा की सड़कों पर
ले जाये जा रहे थे
फिलीस्तीनी झण्डे में लिपटे
तीन मासूम बच्चों के शव
एक चीखती आवाज़ पूछती है
क्या इन्होंने दागे थे राकेट
नहीं ऽ ऽ ऽ ऽ
जवाब देती है विलाप करती हुई भीड़

पता भी नहीं कि उनके हाथ में निवाला था
या उनकी पसन्द का खिलौना
या भयाक्रांत वे गोद में थे अपनी माँ की
जब मौत उतरी उनके घर की छत पर
उसी आसमान से
जो उनके लिए आनंद और विस्मय की जगह थी
जहाँ वे इन्द्रधनुष देखते थे
देखते थे चिडि़यों का उड़ना
उनकी पतंगें उड़ती थीं जिसके अनन्त में
जिसके गर्भ में वे
अपनी फुटबाल मार देना चाहते थे

आखिर कैसा लगता होगा अपनी ही ज़मीन पर
रहने की सजा के तौर पर मार दिया जाना
और वह भी तब जब आपको पता न हो
मौत के बारे में ठीक से

सन्नाटा पसर जाता है सड़क पर
गहरा गहरा इतना गहरा
कि चाहे तो उसमें डूबकर
आत्महत्या भी कर सकते हैं
अमेरिका और इजराइल

सन्नाटा ही नहीं
भय भी गहरा होता है आसपास
आठ साल का मोहम्मद
एक ऐसा सवाल पूछता है
अपने पिता से
जिसे दुनिया के किसी भी कोने में
आठ साल के बच्चे की ओर से
कभी नहीं पूछा जाना चाहिए
हम कब मारे जायेंगे?’

इतिहास ने आपको चाहे
कितनी भी तकलीफ़ दी हो
हत्या का लाइसेंस
नहीं मिलता उससे
आज की तारीख़ में

शर्म करो अमरीका
कि तुम्हारे ही विषाक्त शुक्राणु
की उपज है यह सब
और
इस इजराइल की तो ....
*** 

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