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मृत्यु पर जीवन की विजय के कवि शेरदा

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शेरदा अनपढ़ की कविता पर अनिल कार्की की लम्‍बी टिप्‍पणी 

भूखठण्ड औरउत्पीड़न केकष्टअभीमौजूदहैंतथामनुष्य द्वारा मनुष्यके शोषण और उत्पीड़नका अस्तित्व भी अभी मौजूद है। ये बातें हरजगह मौजूद है औरलोग इन्हेंएक मामूली बातसमझते हैं। लेकिन लेखक और कलाकार इस प्रकारकी रोजमर्रा की घटनाओंका केन्द्रीयकरणकरते हैं, उनके बीचके अंतर्विरोधों और संघर्षों को मूर्तरूपदेतेहैं तथाऐसी रचनाओंका सृजन करतेहैं,जो जनता को जागृत करती है, उनमे साहस भर देती हैं तथा उसे एकताबद्ध हो जाने और अपने  आसपास के वातावरण का रूपांतर कर देने हेतु संघर्ष करने के लिए प्रेरित करती हैं. इस प्रकार के कला-साहित्य के बिना हमरा काम पूरा नही हो सकता।  
(येनान की कलागोष्ठी में भाषण, २नवम्बर१९४२, माओ त्से-तुंग)
हम कितने आशावान और कितने निश्चित हैंअपने आने वाले दिनों को लेकर? जब पूरी दुनिया के भीतर भेड़िया बाज़ार अपनी लपलपाती जीभ लेकर खुला घूम  रहा है, तब कविता को किस तरह इस्तेमाल किया जा सकता है - ये एक अहम सवाल है। हम देख रहे हैं, हम सुन भी रहें है और हम लिख भी रहे हैं, लेकिन क्या उस लेखन के भीतर वह उत्कटजिजीविषा है, जो मौत को हरादेऔरजीवनकीअनवरतताकोलिखसकेमुझे ऐसी कुछ कविताएं बेहद पसंद है - जिनमे "काल तुझसे होड़ है मेरी" शमशेर बहादुर सिंहनरेन्द्र सिंह नेगी का गीत "भोल फिर जब रात खुलली" सरदार जाफ़री  साहब की "मेरासफ़रसाहिर साहब की "मुझसे बेहतर गाने वाले तुमसे बेहतर सुनने वालेऔर बाबा की कविता'प्रेत का बयान'  शामिल हैं। इन सबके बीच एक कविता शेरदा अनपढ़ की, जो मेरी अपनी दुदबोली की कविता भी है, इससेमेरागहराजुड़ाव रहाहै।जीवन के प्रति आस्थाकी इस बेहतरीन कविता की प्रासंगिकता आज के नगरीयबोध, अजनबीपन, तनाव और विसंगति के समय में बहुत ज्‍़यादा बढ़ गयी है। अमेरीकी समाज के खाए पिए अघाए लोग अब जीवन के विरुद्ध हथियार बेचते-बेचते ऊब गए है और एक दूसरे को ही मारने पर उतर आए हैं। ऐसे हालात में जीवन और मृत्यु की बहस सामाजिक यथार्थ  से सीधे  जुड़ जाती है और कविता के भीतर से झाँकने लगता है जीवन, जो लड़ता है मृत्यु सेशेरदा  की कविता'मौत और मनखी' हमारे आने वाले दिनों की कविता हैं  मौत और मनखी (मृत्यु और इन्सान) एक ऐसे जीवन का चित्र है, जिसमें कविता का जुझारूपन देखने को मिलता है। भले ही इसमें शमशेर की कविता 'काल तुझसे होड़ है मेरी' वाली राजनीतिक चेतना न हो पर एक आम आदमी की विराट और विकट जिजीविषा का पूरा चित्र निकल कर आता है।  जहाँ शमशेर कहते हैं-
काल,/ तुझसेहोड़हैमेरी : अपराजिततू-/ तुझमेंअपराजितमैंवासकरूं/ इसीलिएतेरेहृदयमेंसमारहाहूं/ सीधातीर-सा, जोरुकाहुआलगताहो-/ किजैसाध्रुवनक्षत्रभीलगे,/ एकएकनिष्ठ, स्थिर, कालोपरि/ भाव, भावोपरि/ सुख, आनंदोपरि/ सत्य, सत्यासत्योपरि/ मैं- तेरेभी, ' 'काल' ऊपर!/ सौंदर्ययहीतोहै, जोतूनहींहै, काल !/ जोमैंहूं-/ मैंकिजिसमेंसबकुछहै... 
क्रांतियां, कम्यून,/ कम्यूनिस्टसमाजके / नानाकलाविज्ञानऔरदर्शनके / जीवंतवैभवसेसमन्वित / व्यक्तिमैं/ मैं, जोवहहरेकहूं / जो, तुझसे, काल, परेहै('काल तुझ से होड़ है मेरीनामक कविता-संग्रह से)
आदमीकेऔजारोंकाब्यौरादेतेहुएहुएशमशेरकालकोसमझाते  है।अपनीरंगीन सहृदयतावालेअंदाज़  में कालके साथपेशआतेहैं।जिस जीवंतवैभवसेसमन्वितसमशेरकीकविताका 'मैंआताहै,  उसमैंकाविराट वैभवशेरदाकीकवितामें कालकोकालकीतरहललकारताहै। संघर्षशीलमानव,जोकभीहारनहींमानता,उसकेपक्षमेंकालकेविरुद्धरचनात्मकबिगुलफूंकतेहुएशेरदाकाकविकहता  है
मौतकुनैमारिहालो 
मन्खी  कुनोमैकाँमरुँ
अनाड़ी 
त्वीलचैचैफूल
उज्याणी  बाग  फिरलेहरिये  छु 
त्वीलधोके  मनखीमारो गोदफिरलेभरियेछु   

(मौतकहरहीहैमारदिया/ इन्सानकहरहाहैमैकहाँमरताहूँ / अनाड़ी  तूनेदेखदेखकरफूलउजाड़ेबागफिरभी  हरे है / तूनेपेट भरकरइन्सानमारे/ गोदफिरभीभरी  है  )

शेरदामौतकोअनाड़ीकहतेहुएसंबोधितकरते  हैऔरएकतरहसेकालकीखल्लीउड़ातेहुएमृत्यु पजीवनकीविजयके, शोषणपर शोषितकीविजयकेशाश्‍वतसत्यकोदोहरातेहैं। जीवनकीतमामजटिलताओं के बावजूदइन्सानकेलड़तेरहनेऔरपरिस्थियोंसेटकरानेकेआदमीकेअदम्यसाहसके सामनेमौतकोधताबतातेहुएकहतेहै -

लुकीबैरत्वीलवारकरो,चोरिबैरनजरमिला
म्यारकानमेंधरी , मिहुंणीबन्दुकचला
त्वील  उड़नचड़  मारोमैलघोल  में  मिलैरखो
त्योरधधकी चित कें ले मैल खूंनैल  मिटाईराखो
(छिपकरतूनेवारकियाचोरकरनजरमिलायी / मेरेहीकंधेमेंबन्दूकरखकर मेरेलिए  हीचलाई / तूनेउड़ती  चिड़ियामारी  मैंने(उसे) घोंसलेसेमिलायाहै / तेरीधधकीहुयीचिताकोमैंनेलहूसेबुझाया  है )
कविकलाकीज़रुरतकोजीवनकीअहमज़रुरततोमानताहीहै, उसकेनिहितसौंदर्यकोभीबखूबीपहचनताहै।उड़तीचिड़िया कीआजादउड़ानोंकोएकउद्देश्य-एकमंजिलदेताहै।एकघोंसला,जिसमेंमानवीयसंवेदनाओंकीअपारसम्भावनाएं हैऔरअधूरीरहगयीलड़ाइयों कोकिसीवक्तपूराकरनेकाएक अटलविश्वासभी।   'कटतेभीचलोमरतेभीचलोसरभीहैबहुतबाज़ूभीबहुत' वालीयहआशाकेवलआदमीकोपरिस्थियोंसेटकरानेकेलिएतैयारकरतीहै,बल्कियथार्थसेजीवनकेपलायनकोरोकतीहै।उठनेऔरभिड़नेकाजज्‍़बा देतीहै।  शेरदाकाकवि साहिरसाहबकीतरहपलदोपलकाशायरनहीहै। अपने एक लोकप्रिय गीत, जो फिल्‍मी गीत भी है, में साहिरसाहब कहतेहैं -
मैंपल-दो-पलकाशायरहूँ, पल-दो-पलमेरीकहानीहै/पल-दो-पलमेरीहस्तीहै, पल-दो-पलमेरीजवानीहै/मुझसेपहलेकितनेशायरआएऔरकरचलेगए,/कुछ आहें भर कर लौट गए, कुछ नग़में गाकर चले गए ।/ वे भी एक पल का क़िस्सा थे, मैं भी एक पल का क़िस्सा हूँ,/ कल तुमसे जुदा हो जाऊंगा गो आज तुम्हारा हिस्सा हूँ॥/ कल और आएंगे नग़मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले,/मुझसे बेहतर कहने वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले।/कल कोई मुझको याद करे, क्यों कोई मुझको याद करे/मसरुफ़ ज़माना मेरे लिए, क्यों वक़्त अपना बरबाद करे॥
वहाँपरशेरदागरजकरकहतेहै-
द्दोगजकफनैलतयोरक्येयोदुनोढकोजालो
तूघरोदीनिमाईदेलेधरतीउज्यावसकीजालो
त्वीलखूनैकखूनकरोखूँनफिरिलैखूँनछु
त्वीलमाट केंमाटमेंमिलामाटफिरिलैज्यूनछु

(दोगजकफ़नसेतेरेक्यायेदुनियाढकजाएगी / तूघरकीबत्तीबुझादेगातोक्यादुनियाकीरौशनीमिटजाएगी/तूनेखूनकाखूनकियाखूनफिरभीखूनहै/तूनेमिट्टीकोमिट्टीमेंमिलायामिट्टीफिरभीजिन्दाहै)

खूनफिरभीखून है कीयहघोषणा कई-कईरूपोंमेंआमजनमनकेजीवनकापोषणकरतीहुयीआधुनिकचुनौतियोंसेटकराने केलिएकमरकसतीहै।मिटटी केकभीमरनेकायहएलानशोषितोंकेपक्षकीदमदारवकालतहीनहींकरता, बल्किअंतत: मेहनतकरनेवालोंकेविजयकोभीइंगितकरता है।कभीहार माननेवालीमानवीयजिजीविषाकोअपनेकेंद्रमेंरखतेहुएकविताजीवनकीगतिशीलताकोनयाआयामदेतीहै। हालांकिइसक्रममेंअलीसरदारजाफ़रीजीकीएककविता 'मेरा सफ़र'भीमहत्वपूर्णहै।जाफ़रीजीकहतेहै -



मैंएकगुरेज़ाँलम्हा1हूँ अय्यामकेअफ़्सूँ-खा़नेमें मैंएकतड़पताक़तराहूँ मसरूफ़े-सफ़रजोरहताहै माज़ीकीसुराहीकेदिलसे मुस्तक़बिल5केपैमानेमें मैंसोताहूँऔरजागताहूँ औरजागकेफिरसोजाताहूँ सदियोंकापुरानाखेलहूँमैं मैंमरकेअमरहोजाताहूँ

(1-बीत जाने वाला क्षण 2-जीवन के जादुई घर 3-यात्रा में व्यस्त4- अतीत5-भविष्य )


यहाँ भी कभी एक गुजरा हुआ लम्हा  है, जीवन के जादुई घर में। लेकिन शेर दा के लिए जीवनजादुईघरनहींहै, बल्किआदमीकाअपनास्वर्गहै।आमआदमीकेअपनेहाथोंसेनिर्मितहै।उसकेपोर-पोरपरआदमीकी छापहैकुलदीपकीकविताकीइनपंक्तियोंकीतरह-


मेरे साथी/हमें चलना है दिगंत तक/अपनी ही राख से/कई कई बार लेना है जन्म/हमें दौड़ना है बिजली के तार को मोड़कर बनाये गए चक्के के पीछे भागते हुए बच्चे की तरह/नंगे पाँव/थपाथप धरती पर अपने होने की मोहर लगाते हुए.


शेरदाकारचनाकारपहाड़ोंमेंउगाहुआदेवदारहै।उसमेजीवनऔरअपनीमाटीकीगंधहै।यहमहकजीवनकोकभीभीनिर्थकनहींहोनेदेतीऔरहीउसेमेहनतसेपलायनकरवातीहै। दमघोंटूप्रतियोगिताकेदौरमेंमेरीअपनीपीढ़ीसाँसलेरहीहै,मैंभीइससेअछूतानहीहूँ।हमसबजीवन केयोद्धाहैं।हमभीलड़रहेहैं।अपने-अपनेखूंटेसेबंधेहोनेकेबावजूदहममेंभीछटपटाहटहैयेक्याकमहै? यहीछटपटाहटएकदिनहमसेहमारेखूंटेतुड़वाएगीपरकविताकोहमारीउम्मीदेंबनायेरखनीहीहोंगीऔरजीवनकेसाथलयबनकरबहनाहोगा।  हनीसिंहजैसे गायकहमारी विकृतियोंकेपोषकहैं,जो 'मैंहूँबलात्कारी' जैसेगीतलिखतेहैं।उनगीतोंसेभीरचनात्मक स्तरपरहमारीकविताकोलड़नाहोगाजीवनपरमौतकेइससंकटसेबाहरनिकालनेकाऔजारहमारीकविताबननाहोगा।शेरदाजीवनकेइससंकटकोबहुतपहलेभांपचुकेथे,तभीवहकहतेहै-


प्राण छु रे मनिखियो क पूर्वज छु

धरती के चमकुणी माटा सूरज छु

ज्योत छु यो जोत सदा अमर रौलि
लोक लोक में  चमकने
लोक लोक चमकुनी रौलि

(प्राण हूँ मैं इन्सान का पूर्वज हूँ/ धरती को चमकने वाला मिटटी का सूरज हूँ/ ज्योति हूँ ये ज्योति सदा अमर रहेगी/ लोक लोक में चमक रही है /लोक लोक  में चमकती रहेगी)  

इसके अलावा बाबा की एक कविता यह बताती है कि ये मिटटी के लोग और मिट्टी के  सूरज कौन हैं, पर बाबा के यहाँ मौत बलवान है और जीवन भुखमरा मास्टर बाबा केयहाँ जीवन हड्डियों  का पंचगुरा हाथ लहराता है और यमराज कड़ककरबोलताहै, लेकिन शेर दाकेयहाँ वहइन्सान कीउत्कट जिजीविषा के सामने  हार मान लेता है - 


रेप्रेत -
कड़ककरबोलेनरककेमालिकयमराज 
सच - सचबतला !
कैसेमरातू ?

भूखसे, अकालसे ?
बुखारकालाजारसे ?
पेचिसबदहजमी, प्लेगमहामारीसे ?
कैसेमरातू , सच -सचबतला !          -नागार्जुन

मनखीकेमरीद्युलकेंतूमनमईख़ुशीहूँनेरौछै
मासु केंबुकूंलकुनोछियेहाड़केंचुसनेरौछै

काच - पाक  समेरीत्वीलचितमेंचढूनै  रेहै

मान्खियकध्वाकमेंतूमिटटीकेंजलुनै  रेहै
तूकुनैमारिहालोबेवकूफा !मैंकामरुँ   - शेर दा

(इन्सानकोमारदूंगाकरकेतूमनमनहीमनखुशहोरहाहै / मांसकोचबाऊंगाऔरहाड़चूसूंगाकहरहाहै/कच्चापक्कासमेटकरतूचिताचढातेरहना / इन्सानकेधोखेमेंमिटटीकोजलातेरहना/ तूकहरहाहैमारदियाबेवकूफ! /मैंकहाँमरा )

बाबाकीतरहशेरदाकालड़ता-भिड़ताआमआदमीयमराजकोअपनेहालातोंसेपरिचितकरवातेहुएभीपरिस्थितियोंऔरजीवनकेअंतर्विरोधोंसेदोहरेस्तरपरटकराताहै।शेरदाकीकविताकाआमआदमीडटकरमुकाबलाकरनेमेंविश्वासकरताहै। यहीशेरदाकीवास्तविकजीवनकीविशेषताभीरही है। जीवनसेहताशहुएलोगोंकेलिएहताशाभलेहीव्यक्तिगतस्तरपरहोपरऐसाहैनहीं। इसहताशाकामूलकारणआदमीकीसम्पूर्णश्रमशक्तिकोखरीदनेऔरउसकामनचाहाउपयोगकरनेवालीसत्ताएंऔरमुठ्ठीभरलोगहैं।हमारेदौरकीजटिलताएंइतनीआसाननहीहैं,जितनाआसानसमाजशात्रपढनाहोताहै।एकहीमुद्देपरसाम्प्रदायिकऔरप्रगतिशील लोगोंएकतरहसेसोचनेकोमजबूर करती येसमस्यासोचकेसाथ-साथसघनहोतीजटिलताओंकीभीहैनायकढूँढतामध्यमवर्गकिसीभीसमयअस्सीसालाबूढ़ेकोआपनानायकघोषितकरसकताहैऔरकिसीभीसमयकुमारविश्वाससरीखेकविमेरेनौजवानसाथियोंकोपागलऔरदीवानाबनासकतेहैं औरहमारेपरिस्थितियोंसेटकरानेकेजज्‍़बेकोनेस्‍तोनाबूदकरसकते हैं।किसीभीसमयसरकारकहसकतीहै कि लोकतंत्रमेंसबकोअपनागुस्सानिकालनेकाअधिकारहैइसलिएआंदोलनोंकापंडालसरकारअपनीओरलगाएगी। परक्याआन्दोलनगुस्सानिकलनाभरहै? अबकविताकीजिम्मेदारीबढ़गयीहै।उसेभटकावकेइसजंगलमेंसहीरास्तातोचुननाहीपड़ेगावरना कविताकादोगलापनउसेखालेगा। इसतरहकीउत्कटजिजीविषाकीजीवितकविताओंकोऔजारबनानाहोगा,जोचौतरफाहमलोंकोझेलभीसकेंऔरसहीरास्ताभीदेसकें।मेरीउम्रकेनौजवानोंऔरछात्रोंकेकविविद्रोहीकहतेहै -

मैं भी मरूंगा/और भारत भाग्य विधाता भी मरेंगे/मरना तो जन-गण-मन अधिनायक को भी पड़ेगा लेकिन मैं चाहता हूं/कि पहले जन-गण-मन अधिनायक मरें/फिर भारत भाग्य विधाता मरें फिर साधू के काका मरें/यानी सारे बड़े-बड़े लोग पहले मर लेंफिर मैं मरूं- आराम से, उधर चलकर बसंत ऋतु में/जब दानों में दूध और आमों में बौर आ जाता है/या फिर तब जब महुवा चूने लगता है या फिर तब जब वनबेला फूलती है/नदी किनारे मेरी चिता दहक कर महके और मित्र सब करें दिल्लगी/कि ये विद्रोही भी क्या तगड़ा कवि था/कि सारे बड़े-बड़े लोगों को मार कर तब मरा।

कविकोकबमरनाहैइसबारेमेंइससेबेहतरकविताऔरकोईनहींहोसकती।वाकईयेअपनीमनचाहीमौतहै, जटिलसामाजिकदबावोंकीमौतनहीं। इसमौतकोआमीनकहाजासकताहै। लेकिनफ़िलहालतोशेरदाकीकविताकीतरहहमेंमौतसेऔरआदमीयतकोखत्मकरनेवालीपरिस्थितियोंसेउनकेहीअंदाजमेंटकरानाहोगा.

तूजगसेउनेरे, मैंजगब्यूंजूनेरऊँ
तूचितजगुनैरे, मैंचितनिमुनैरऊँ

(तूजगकोसुलातेरहेमैंजगकोजगातेरहूँ/ तूचिताजलातेरहेमैंचिताबुझातेरहूँ)
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अनिल  युवा कवि, वामपंथी कार्यकर्ता और फिलहाल कुमाऊं  विश्‍वविद्यालय में शोधछात्र  हैं। उनकी कुछ कविताएं और एक लम्‍बा  लेख पाठक अनुनाद पर पहले भी पढ़ चुके हैं।  

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