अनुनाद को कविताओं के प्रकाशन के लिए आनेवाले बिलकुल नए कवियों के मेल अकसर अपने साथ कुछ सार्थक चीज़ें लाते हैं। इस बार हमें चंडीगढ़ से रणजीत सरपाल की कविताएं मिली हैं। इनका रंग अलग है, अनगढ़पन और कच्चापन भी इनमें है ..लेकिन इनका बयां सही दिशा में जाता दीखता है। मेरे लिए रणजीत सरपाल का यह मेल ही उनसे प्रथम परिचय है। पंजाब विश्वविद्यालय के इंगलिश एंड कल्चरल स्टडीज़ विभाग के शोधकर्ता इस कवि की कविताओं का स्वागत है अनुनाद पर...इस उम्मीद के साथ कि उनके अगले क़दम अधिक सधे और विचारवान होंगे।
1
बालकनीमें
गमलोमेंलगेपौधे
लगतेहैंकाफ्काकेकिसीउपन्यासकेकिरदार,
अस्तित्वहैभीऔरनहींभी
पत्तियोंकाज्यादाहराहोना
लगतेहैंकाफ्काकेकिसीउपन्यासकेकिरदार,
अस्तित्वहैभीऔरनहींभी
पत्तियोंकाज्यादाहराहोना
औरटहनियोंकागीलारहना
एकअजनबीउदासीहै ,
उलझनोंसेभरा
एकअजनबीउदासीहै ,
उलझनोंसेभरा
जैसेकिसीअदालतकीकचेहरीमेंखड़ाहो
औरयेभीनपताहोकीगुनाहक्याहै,
काफ्काखुदयहाँआएतोबतायेइसको
औरयेभीनपताहोकीगुनाहक्याहै,
काफ्काखुदयहाँआएतोबतायेइसको
इसकीकहानी,
हररोज़सुबहएकब्राह्मणधोताहैअपनेपाप
हररोज़सुबहएकब्राह्मणधोताहैअपनेपाप
पौधोंमेंपानीडालकर,
येब्राह्मणकाफ्काकोनहींसमझता
नहीइसेयेपताहै
येब्राह्मणकाफ्काकोनहींसमझता
नहीइसेयेपताहै
येपौधोंकोसांसदेरहाहैयागुलामी
येवहीचौकीदार है
येवहीचौकीदार है
जिसका जिक्र
काफ्कानेएकउपन्यासमेंकियाथा.
काफ्कानेएकउपन्यासमेंकियाथा.
***
2
होसकताहै
तुझेबड़ाअजीबलगे,
मैंनेअपनेनाख़ूनबढ़ा लिएहैं
वक़्तकोखुरेदनाचाहताहूँ
तबतक
जबतक
येनज़रनाआजाये
तुमपहलेदिन
कैसेदिखते थे
इतनाउलझगयाहूँतुझमेंऔर
तुझसेसम्बंधितचीजोंमें
कोईहिसाबनहींरहता
बसइतनासायादहै
जिसदिननमकीनचनेमिलेउसदिनसोमवारहोताहै ,
तुम्हारेजूठेचमचकापासपड़ेहोना
तुम्हारापासबैठेहोनालगताहै
***
3
तुमजूनकोदिसम्बरकहना
मैंपतझड़कोसावन
चलोआजमिलकर
वक़्तकोधोखादेतेहैं
***
4
टीवीकेचैनलबदलतेबदलते
कह दियाउसनेसबकुछ
मैंनेजूतेपहने
परन्तु वहीँ
तसमेबाँधनेकाहक़खोदियाथा
रास्तेभरमें
दोबार ठंडीसाँसेंलीं
दो-चारबार थूकाफुटपाथपे
सीढ़ियांउतरते-उतरते
मैंनेभीनिश्चयकरलिया
रिक्शेवालेसेपूछाउसकीबीवीकाहाल
लोकलअख़बारख़रीदा
तीननिधनसूचनायें
पढ़करमिलगयीसांत्वना
रोज़गारवालापृष्ठखोला
दो-चारगोलेलगाये
कल केदिनकारोज़गारमिलगयाथा
***
5
दुनिया
खुदहमेशाचीलकीआँख से
देखती आयी
औरमुझे
हमेशाकीड़ेकीआँखसेदेखनेको
मजबूरकरती आयी
पथरोंमेंबैठकर
अबतकसाजिशें
करती आयी
अपनीचुप्पीसे
लोगोसेमजदूरीकरवाईहैतुमने
कितनी कायरहै
कितनी डरी हुई
आसमानकीऊँचाईयाँ छोड़
मेरेबराबरआकरबातकर
घरका इकलौताकिवाड़चूलसे
उतरगया
ज़रामेराहाथबँटा
फिरतेरीगलतीपे
मैंभीतुझे
दोचारगालियाँदेकरदेखूं
तुझेआदमीकीतरहगुस्साआताहै
यानहीं
***
6
दो-चारभाषण
सामाजिकअसमानतापे
देनेकेबाद
बुद्धिजीवी
घरकीतरफलौटाहै
अपनीहोंडासिटीगाडीपे,
रास्तेभरबसयहीसोचताहै
कोईभीउसकीतरहनहींसोचता ,
उसकीभड़ासनिकलतीहै
गुब्बारेबेचनेवालेपे
जोगुनाहकरलेताहै
उससेपहलेसड़कपारकरनेका ,
घरआतेमालीकोबोलताहै
वोखानेकीचीज़ेनछुआ करे ,
मालीनेउसकेसरकारीबगीचेमें
फूलोंकेबीचछुपाकर
एकआककापौधालगारखाहै
जिसदिनमालिकऔकातकीबातकरताहै
वोसबसेज़्यादापानी
इसआककेपौधेकोडालताहै,
आककीजड़ोंमेंखड़ेपानीमें
मालीकाबेटा
उनभाषणवालेपन्नोंकीकश्तियाँबनाकेचलाताहै
***
रणजीतसरपाल, शोधकर्ता -इंग्लिशएंडकल्चरलस्टडीज
पंजाबयूनिवर्सिटी
चंडीगढ़