यह कोई घोषणा, अंतिम कथन या प्रशंसा पत्र नहीं है ! अत: कुछ तर्क पाठक या कवि दोनों को आहत कर सकते है ! अत: लिखे गए हर तर्क, वाक्य, शब्द को खुद पुनः परखें ! क्योकि अंतत: यह केवल एक व्यक्ति का दृष्टिकोण है! मैं यहाँ सीधे वर्तमान हिंदी साहित्य की कविता के अंतरिक्ष में स्वतंत्र विचरते और पहचाने गए कुछ नए कवियों और उनकी कविता की रचना प्रक्रिया पर बात करूँगा! वर्तमान कविता-समय में एक दम नए उभरे कवियों में,अरविन्द, कर्मानंद ,शुभमश्री,शायक अलोक,अविनाश मिश्र ने अपनी जगह खुद बनाई है ! उनका परिचय कविता का परिचय है! यहां शामिल कवि-गण अपनी कविताओं से पहचाने गए हैं न की पुरस्कार की अनुकंपाओं से !
नैना देत बताय सब,हिय को हेत-अहेत..
जैसे निर्मल आरसी,भली-बुरी कहि देत !
[ वृन्द ]
यह साहित्य समय जब "तू मेरी मैं तेरा"तोता-मैना टाइप के साहित्य-बोध से ग्रस्त है ! हर कोई जब "दो जोड़ी पैरों"की धूलि अपने माथे पर सुशोभित कर और कविताधीशों के साथ कुछ अच्छी तस्वीरों को खिंचवा, चापलूसी की स्नेह-मालाएं चढ़ाकर"राजा का दोस्त राजा"वाली शोहरत और पुरस्कार पाने को ललायित है ! ऐसे निर्लज्ज संकटग्रस्त कविता-समय में उपरोक्त कवियों ने अपनी कविता के बल पर कविताई के न केवल नए मानक गढ़े बल्कि इसे पुरस्कार जनित कविता-आकर्षण से विपरीत कविताई की मुख्य धारा के उस लगभग अनुपस्थित हो चुके कविता-बोध तक पहुँचाने में सक्षम भी हुए जहाँ से पुरस्कार का पाना या न पाना बेमानी हो चुका है !
कह सकते है कविता के ये वो पथिक है जिन्होंने पुरस्कार पाने को लगभग महत्वहीन कर दिया है ! ये वो कवि जो पाने को ललायित नहीं है उनकी उपेक्षा रचने से ! उनकी कृत-संकल्पता रचना से है रचे के मर्म से है! ऐसे समय में जब कविताई का संकट गहराता जा रहा है ! कविता एक मरी हुई विधा घोषित हो चुकी है ! कविता जब रद्दियों की तरह पत्र-पत्रिकाओं में ठूँसी जा रही है और कवि होना ओल्ड फैशन्ड हो चुका है ! ऐसे धुंधले परिदृश्य के बीच इन कवियों ने न केवल अपनी कविताओ की चमक बनाये रखी बल्कि फिर से इस विधा को फिर से पुनर्जीवित किया है ! यही कारण है की इनमे से प्रत्येक कवि अपनी कहिन अपने बोध अपने विचार और अपनी संकल्पना में एक दूसरे से पृथक है!
इस प्रयास में एक अप्रयास है / इस कोशिश में एक अकोशिश
अरविन्द

मिलने से पूर्व एक एकांत था तुम्हारा
और जो मेरा था वो कहीं न कहीं
तुम्हारे एकांत की तलाश में था” !
अरविन्द अपनी लिखित कविताओं में इसी एकांत और अनिच्छा की तलाश में घूमते नजर आते हैं ! उनकी एकांतिकता में निराशा अतृप्ति और बेचैनी का भाव है ! उनकी एकांतिकता में पाने की अनिच्छा की उपेक्षा न पा सकने की निराशा से जनित बेपरवाही और अनिच्छा की पीड़ा की उपस्थिति ज्यादा है ! वह इस तिलिस्म को तोड़ पाने में सक्षम होने के बावजूद उसे तोड़ पाने की कोशिश करते नहीं दिखते और इसी मूल सूत्र पर लगातार अपने काव्य-संसार को सृजित करते दीखते!
उन्ही के शब्दों में कहूँ तो“दुःख से कितना भी भरी रहे एक कविता एक समुद्र का विकल्प होती है.!” उनके यहाँ उदासियों से उपजी अनुभूतियाँ है ! वो एक मूलत: एक साइलेंट कवि है ! अरविन्द की कविताओं की सबसे खूबसूरत बात ये है की वो अपने लिए लिखते है! प्रत्येक रचनाकर अपने लिए लिखता है और जो इस मनोभाव से लिखता है! उनका लेखन सदैव विशिष्ट होता है ! किन्तु अपने लिए लिखने का अर्थ निजी-लेखन से नहीं है अपितु किसी भी घटना/ दृशय को स्वत: जीते हुए उसके अनुभव, पीड़ा, मनोभाव से गुजरते हुए अपने लिए लिखने से है ! वह अनुभव जितनी ईमानदारी से जिया जायेगा रचना उतनी ही जीवंत होगी ! पढ़ने वाला रचे के रूपकों को जीता है !
अरविन्द के पास ये रूपक तो है किन्तु सीमित स्वरूप में ! उन्हें बृहत होना होगा अपने अनुभवों में अपने रूपकों में ! अरविन्द को उन नई कवि भूमिकाओं,विकल्पों की तलाश करनी होगी जहाँ कवि की बोई उम्मीदों की फसलें भी हरियाएं और वो अपने सहमे हुए दखल से बाहर आएं !
भीड़ से अलग कविता की आवाज/ ऊँची कम / कम नीची
कर्मानंद आर्य
कर्मानंद कविता के पीछे खड़े होकर काम करने वाले कवि है! वह एक कवि के रूप में कविता को खुद से पहले प्रस्तुत करते हैं! उनकी कविताओं को देखकर लगता है जैसे उन्हें लोकप्रिय होने का लोभ नहीं है ! उससे अधिक उन्हें कविताई का लोभ है ! यही कारण है की उनकी कवितायेँ अपने अर्थों के दायरे से इंच भर भी बाहर नहीं खिसकती ! यही कारण है की वो कविता में कविता की तरह उपस्थित होते हैं न की निजी उपस्थिति के साथ ! निजी उपस्थितियां कविता के लिए घातक है कुछ हद तक एक केमिकल रसायन की तरह जो धीरे-धीर कवि और कविता दोनों को अकविता से संक्रमित कर सकता है !
"पूरा जीवन मैने यही होना चाहा
मिटटी लोहा सोना पत्थर
जो मैने होना चाहा इसी दुनिया का था
कभी लोहा कभी सोना कभी पत्थर कभी बारूद !!
यह कवि सचमुच कहीं गीली मिटटी सा उपस्थित है तो कहीं लोहा सोना पत्थर और बारूद सा ! कवि के पास इतने व्यापक सामर्थ्य होने के बावजूद उनमे तर्कशीलता के मौलिकपन की कमी दिखती है ! वह कविता को सीधे-सीधे हथियार की तरह प्रयुक्त करते तो दीखते है! वो जैसे कविता को ब्योरों से भर देना चाहते है ! यही उनकी कविताओं को रूढ़िगत परम्परा की तरफ धकेल देती है !
लेकिन वह स्थितियों से संवाद करते हुए उन नई सम्भावनाओ को प्रकट करते नहीं दीखते ! उनकी पक्षधरता पक्षधरता भर है ! उन्हें सोचना होगा कविता को वामपंथी बेचारगी भर नहीं है ! कविता कोई कुरुक्षेत्र का मैदान या आंदोलन का अखाडा नहीं है ! कविता यथार्थ का विचारशील मूल्यांकन और उसका प्रतिपक्ष रखने की विधा है ! काफी हद तक कविता अपने समय की गवाही है!
कवि की गवाही उसके विचार, उसका सयंत विवेक में अपनी बात रखने की कला है ! इस परिप्रेक्ष्य में उन्हें काफी काम करने की जरूरत है ! किन्तु अपनी लिखी नयी कविताओं में वह ये मिथक तोड़ते नजर आते है ! वह नयी पीढ़ी के सुदृढ़तम कवि है ! उन्हें कविता के भीतर की कला और वैचारिकता पर और अधिक काम करना होगा !
एक बेपरवाह हवा/ हवा के विरुद्ध एक हवा
शुभम श्री
शुभम श्री बेमन सी बेपरवाह कविता की आवाज है! उनका मन जैसे किसी एक दृश्य एक विषय में नहीं रमता ! हर दृश्य के लिए व्याकुल और हर दृश्य से उतना ही तीव्र अमोह ! वह परिवर्तनकामी और काफी हद तक एक व्यंगात्मक कवि ! उनका कटाक्ष तलवार की धार का कटाक्ष नहीं अपितु उपहास की वो भेदक मखौल उड़ाती हंसी है जो अपने शत्रु का कलेजा चीर दे !
उनके पास न होने कला की परवाह है न कविता की न हिंदी साहित्य की न उसकी आलोचना की न प्रशंशा की ! वो कविता को अपनी शर्त पर जीना चाहती है ! उनकी कविताओं में अधैर्य का अवगुण है ! कविता आखिरकर मानवीयता का राग है ! कविता की मूल प्रकृति उनकी कविताई की तड़क भड़क में आहत दिखती है ! वे प्रयोगधर्मी तो है लेकिन उन प्रयोगों को प्रचलन या बतौर ट्रेंड सेट करने में बुरी तरह से चूक जाती है क्योंकि पाठक उनके पढ़ कर चौंकता भर है ललायित नहीं होता!
“हमारीआंखोंमेंतुमहंसीहो
एकतनीहुईमुट्ठी
एकजोशीलानारा
एकपोस्टरबदरंगदीवारपर
एकसिलाईउधड़ाकुर्ता
चप्पलकेखुलेहुएफीतेकीकील
पॉलीसिस्टिकओवेरियनसिंड्रोम
भीहोतुमचुपकेसे”
एकतनीहुईमुट्ठी
एकजोशीलानारा
एकपोस्टरबदरंगदीवारपर
एकसिलाईउधड़ाकुर्ता
चप्पलकेखुलेहुएफीतेकीकील
पॉलीसिस्टिकओवेरियनसिंड्रोम
भीहोतुमचुपकेसे”
मैं उन्हें अक्सर विपिन चौधरी का बिगड़ैल संस्करण और अनामिका की कविताओं की परिपक्व होती आधुनिक होती स्त्री के रूप में लेता हूँ ! जिसके पास स्त्री होने की बेचारगी नहीं जीवन का उत्सव है! उनके यहां कला भी कविता भी प्रतिरोध भी है ! वो एक दम नवीन बिम्बों में उपस्थित है ! लेकिन यह सब कुछ गड्ड-मड्ड है ! एक मूल भाव पूरी तरह से प्रखर नहीं है ! वह सबतर हो जाना चाहती है लेकिन एक समान्य पाठक की तरफ से कविता में नहीं आ पाती ! उन्हें ये रास्ता भी तलाशना होगा ! क्योंकि कविता का काम केवल बोल्ड होना भर नहीं है !
कविता की कला का आलोक
शायक आलोक
कला अतएव मनोरजंक और प्रिय होती है! वह मन मोहने वाली गति है ! शायक की कवितायेँ कविता में कला का अद्युत उदाहरण है ! उनकी कवितायेँ वर्णात्मक कवितायेँ है ! वो किसी घटना समय या अपने सृजित बिम्ब का वर्णन करते नजर आते हैं ! उनकी कविता में एक अवगर्दी है एक खिलंदड़पन है ! उनका प्रतिरोध आक्रमक न होते हुए भी हमलावर है ! वह स्त्री-हन्ता होते हुए भी स्त्री -वादी हैं !
“मुझे चाहिए कविता में प्रेम
चाहिए अनारकली का वस्तुपरक मूल्यांकन
महंगाई पर सवाल
पहाड़ों की लोक धुन - सुन्दरता
अनाधुनिक नहीं रहे पगलाए कवि की आत्मग्लानि
बाजार मूल्यों पर कवयित्रियों की साज सज्जा
इत्र-काजल-चरखा-बेलन
विमर्श अद्भुत विस्तार तक” !
वो खुद इस चाह की उपेक्षा करते नजर आते हैं! वो मुझे बेहद सक्षम नजर आते है ! लेकिन इस सक्षमता में बिखराव है,चंचलता है गंभीरता नहीं है ! उनकी सबसे बड़ी कमी मुझे यह लगती है जैसे वो लोकप्रिय के आधार पर लिखते है ! वो खुद के लिए लिखते-लिखते जैसे दूसरों को प्रभावित करने के लिए लिखने लगते है ! यही आकर वो भटक जाते है ! उन्हें सोचना होगा इतिहास लोकप्रिय जैसे बाजारवादी चीज को सबसे पहले विस्मृत करता है !
वह इस समय सृजित कवियों में उपमाओं और कल्पनाओं के शीर्षस्थ कवियों में से हैं ! लेकिन इधर कुछ वो खुद को दोहराते से नजर आते हैं ! लगभग एक सी एकरसता से ग्रस्त उनका काव्य-विवेक सिकुड़ता नजर आता है! उनकी कविताओं में कला बहुत ज्यादा है ! लेकिन यथार्थ से किया साक्षात्कार कम ! उन्हें एक काव्य-गंभीरता, कमतर कला और यथार्थ-परक होने की दर किनार है ! उन्हें विविधता और नैचुरलिटी की उपेक्षा नहीं करनी चाहिय !
कविता का एक मध्यम वर्गीय घर
अविनाश मिश्र
मैं इस तरह सोचा करता हूं कि
एक कविता पर्याप्त होगी एक कवि के लिए
और कभी-कभी कई कवियों के लिए
एक कविता भी बहुत अधिक होगी
मानवीयता के असंख्य नुमाइंदों
और उनकी कल्पनातीत नृशंसताओं के विरुद्ध
मैं इस तरह... इस तरह सोचा करता हूं कि...
उतनी ही कोशिश ,उतनी ही प्राकृतिक, उतनी ही ठेठ ,उतनी ही कला ,उतना ही धुंआ और उतनी ही बेचैनी! सौंदर्य भी असौंदर्य भी ! उत्साह भी निरुत्साह भी ! कैद भी स्वछंद भी ! एकदम मध्यमवर्गीय आग्रह और चेतना का कवि ! वह जीवन क्रियाओं पर लिखते है विसंगतियों पर ! लेकिन वे अति-बौद्धिक और बोझिल हो जाती है ! एक अतिरिक्त दार्शनिकता और निष्क्रियता से पीड़ित उनकी कवितायेँ ,एक अतिरिक्त सी कोशिश में रची लगती कवितायेँ वैचारिकता का अतिरिक्त दबाब सा झेलती दिखती है
जिस कारण कविता की अपनी उपस्थिति कवि की उपस्थिति की ओट में दब जाती है ! उन्हें इस अतिरिक्त ज्ञान विवेचना से बचना होगा की वे कहीं प्रवचन भर न रह जाएँ ! उनकी किसी भी कविता को उनकी दूसरी कविता के साथ समरसता के साथ पढ़ा जा सकता है ! उनमे पाठान्तर या भावान्तर नहीं है ! उनमे एकरसता है ! उनके यहाँ मौलिकपन मर रहा है! वो जैसे खुद की आवृति दर आवृति कर रहे हैं !
उन्हें यह भी ध्यान रखना होगा कविता नई उम्मीदें जगाने की कला है ! उन्हें अपनी कविताओं के सुस्त निराशावादी विचारों से बचने की कोशिश करनी चाहिए ! क्योंकि आखिरकर उनकी कवितायेँ पढ़ी जाएँगी उन्हें अपना आदर्श रखना होगा ! अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वाहन करना होगा! उनके यँहा कविता की लय और ताल की तारतम्यता का आभाव है ! उन्हें अतुकांत कविता और अनूदित कविता के बारीक अंतर को समझते हुए कविता को बचाने की कोशिश भी करनी चाहिए यही कारण है की उनकी किसी कविता का"विशेष कविता"के रूप में हमारी स्मृतियों में कोई मूल स्वरूप नहीं बनता ! हालाँकि वह इस तरफ भी रुख कर चुके है !
शमा नक़्क़ाद तक भी आती है
इन सब कवियों में एक विशेष कमी जो उद्धृत की जा सकती है वो है आत्मलोचना की ! वो जैसा अपना एक शिल्प बना लेने की जिद में कवितायेँ लिख रहे है ! उन्हें सोचना होगा हर घटना अपने आप में एक कविता है एक दूसरे से भिन्न ! कवि को चाहिए की वो कविता को अपनी तरह बनाने की उपेक्षा उधर जाये जहाँ कविता ले जाती है! वह शिल्प के चक्कर में दुहराव से बचे !
आशा है आपने मेरी विवेचना के विरुद्ध अब तक अपनी नाराजगियों , अपने अकाट्य तर्कों के शब्द-बाण तैयार कर लिए होंगे !
****
चन्दन राय स्वयं प्रतिभावान युवा कवि हैं। उनकी कविताओं के रेखांकन अब कविता प्रेमियों के ज़ेहन में स्थायी हो रहे हैं। अपने कवि सहयात्रियों का मूल्यांकन उन्होंने पूरी शिद्दत से किया है - मैं इसे मूल्यांकन की शुरूआत मानता हूं। यह बहुत संक्षिप्त हैलेकिन यहां से उन बहसों और आलोचना की ओर बढ़ा जा सकता है, जिसकी कविता को ज़रूरत है।
चन्दन अपने नाम के आगे महाभूत लिखते हैं, उसे हटा देने की धृष्टता मैंने की है। वे चाहेंगे नाम को यथावत लिख दिया जाएगा। इस लम्बी टिप्पणी के लिए अनुनाद अपने लेखक को शुक्रिया कहता है।