11 अप्रैल
नई दिल्ली। अजय सिंह की कविताएं भारतीय लोकतंत्र की विफलता को पूरी शिद्दत से प्रतिबिंबित करती हैं। उनकी कविताओं का मूल स्वर स्त्री, अल्पसंख्यक और दलित है। सांप्रदायिकता से तीव्र घृणा उनकी कविताओं में मुखर होती है। अजय सिंह की कविताओं में दुख है लेकिन बेचारगी नहीं। जूझने की कविता है अजय की कविता। यह बातें शनिवार को वरिष्ठ कवि, पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक अजय सिंह के पहले कविता संग्रह ‘राष्ट्रपति भवन में सूअर’ पर चर्चा के दौरान सामने आईं। गुलमोहर किताब द्वारा दिल्ली के हिंदी भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में कवि, लेखक, पत्रकार, आलोचक, चित्रकार, प्राध्यापक व तमाम विधाओं के वरिष्ठ लोगों ने शिरकत की।
नई दिल्ली। अजय सिंह की कविताएं भारतीय लोकतंत्र की विफलता को पूरी शिद्दत से प्रतिबिंबित करती हैं। उनकी कविताओं का मूल स्वर स्त्री, अल्पसंख्यक और दलित है। सांप्रदायिकता से तीव्र घृणा उनकी कविताओं में मुखर होती है। अजय सिंह की कविताओं में दुख है लेकिन बेचारगी नहीं। जूझने की कविता है अजय की कविता। यह बातें शनिवार को वरिष्ठ कवि, पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक अजय सिंह के पहले कविता संग्रह ‘राष्ट्रपति भवन में सूअर’ पर चर्चा के दौरान सामने आईं। गुलमोहर किताब द्वारा दिल्ली के हिंदी भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में कवि, लेखक, पत्रकार, आलोचक, चित्रकार, प्राध्यापक व तमाम विधाओं के वरिष्ठ लोगों ने शिरकत की।
वरिष्ठ कवि वीरेन डंगवाल ने कहा अजय सिंह की कविताएं न्यायपूर्ण आक्रामकता की है। विचार के स्तर पर वे बेहद महत्वपूर्ण हैं और एक बायोस्कोपिक वितान रचती हैं। ये कविताएं मौजूदा दौर का अहम दस्तावेज है। अजय हमारे दौर के अहम कवि है। विचार के स्तर पर, वामपंथ के आग्रह के स्तर पर, समाज में परिवर्तन के स्तर पर इनकी रचनाएं सुंदर है। फिल्मी गीतों के प्रयोग सहित कई नए प्रयोग कविताओं में हैं, जिनपर गंभीर चर्चा होनी चाहिए। कवि को संग्रह के लिए बधाई देते हुए वीरेन डंगवाल ने कहा कि यह संग्रह कई ध्यान आकर्षित करेगा। यह भर्त्सना का भी पात्र बनेगा, लेकिन यह कई बहुत जरूरी सवालों को भी रेखांकित करने का काम करेगा। उन्होंने कहा कि अजय की कविताएं अच्छी और सच्ची रचनाशीलता का द्योतक हैं, जो विचारधारा के महत्व को स्थापित करती हैं।
वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल ने कहा कि अजय की कविताओं में छलांग लगाने की अद्भुत क्षमता है। ये दस्तावेजी कविताएं है। इनका कैचमेंट एरिया बहुत बड़ा है। विस्मरण के दौर में ये भूलने के खिलाफ खड़ी हैं। ये स्मृति को बचाने का काम करती हैं। इन कविताओं को उन्होंने दस्तावेजीकरण की कविताएं बताया। इनमें नेली का नरसंहार से लेकर चंद्रारूपसपुर, बथानी टोला... जैसे अनगिनत नृशंस हिंसाओं का संदर्भ आता है जिनके कारण हमारा जीवन बहुत तबाह हुआ है, उनका विस्तृत उल्लेख है। उन पर कवि शमशेर के अमन के राग का गहरा असर है और यह आज के दौर में जरूरी है। मंगलेश डबराल ने कहा कि अजय की कविताओं में प्रेम से तुरंत राजनीति और राजनीति से प्रेम, बच्ची से राजनीति, राजनीति से परिवार के बीच जो छलांग लगती है, वह जबर्दस्त है। कविता का उड़ान देना अहम है। उन्होंने खुसरो घर लौटना चाहे और झिलमिलाती हैं अंनत वासनाएं शीर्षक कविताओं को बेहतर कविताएं बताते हुए कहा कि उन्हें अजय सिंह की प्रेम कविताओं से थोड़ी दिक्कत है। उन्होंने कहा अजय सिंह की कविताओं में क्रोध बहुत है, जहां इसका द्वंद्वात्मक इस्तेमाल है, वहां बेहतर लगता है और जहां नहीं वहां भारी हो जाता है।
चर्चा की शुरुआत करते हुए आलोचक वैभव सिंह ने अजय सिंह की एक कविता को उद्धृत किया और कहा कि ये ‘पवित्र आवारागर्दी’ से निकली कविताएं हैं। ये प्रतिरोध और छापामार अंदाज की कविताएं हैं। इन कविताओं में कहीं से भी दया व हताशा नहीं, ये जूझने की आंदोलन की कविताएं हैं। ये मुट्ठी ताने कविताएं हैं। एक रेडिकल मार्क्सवादी की तरह यार-दोस्तों को याद करने का ज़ज्बा कॉमरेड अंजता लोहित की स्मृति में लिखी गई कविता में दिखाई देता है। यह वाम आंदोलन की परंपरा की याद दिलाता है। इसके साथ स्त्री-पुरुष के संबंधों को बिल्कुल नए ढंग से, नई नींव के साथ रखा गया है। कविताओं में औरत स्वायत्त है, वह पेसिव नहीं है। शीर्षक कविता ‘राष्ट्रपति भवन में सूअर’का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इस कविता में राष्ट्रपति भवन सत्ता प्रतिष्ठान के एक रूपक के रूप में आया है जिसके माध्यम से अजय सिंह भारतीय लोकतंत्र की विफलता की कहानी कहते हैं। इस कविता में ब्यौरे बहुत ज्यादा है, जिसे शिल्प नहीं झेल पाता।
वरिष्ठ कथाकार और समयांतर पत्रिका के संपादक पंकज बिष्ट ने कहा कि अजय घर-परिवार से शुरू करके देश-दुनिया को इसमें समेट लेते हैं। उन्होंने कहा कि कविताओं में बिंब आए हैं, वह कवि की सचेत वैचारिकी का परिचायक है। कोई भी चीज बेवजह नहीं है। युवा आलोचक आशुतोष कुमार ने ‘राष्ट्रपति भवन में सूअर’ कविता के बारे में कहा कि यह इस बात को बताती है कि भारतीय लोकतंत्र में किन लोगों को होना शामिल होना था जिन्हें शामिल नहीं किया गया। अजय की कविता हर तरह के रिश्ते को रेखांकित करती हैं चाहे वे स्त्री के पुरुष के साथ हों, सत्ता प्रतिष्ठान के अपने नागरिकों के साथ या समाज के अपने कलाकारों के साथ। ये अकविता की कविताएं नहीं हैं। अकविता एक पर्सनल व्यक्तिवाद की जमीन होती है, लेकिन अजय सिंह की कविता में ऐसा नहीं है। कवि का सब कुछ नाम व पहचान के साथ कविता में मौजूद है, वह डायरेक्ट है, कोई मुलम्मा नहीं चढ़ाता। सब कुछ साफ है। कविता में प्रेम प्रचुर है। एक पुरुष जो कामना में डूबा हुआ है। एरोटिक प्रेम है, स्त्री को डिटेल में चित्रण। ऐसा पुरुष जो ऐसी स्त्री से प्रेम करता है जो स्वतंत्र हो, किसी भी झांसे में न आए। झिलमिलाती हैं अनंत वासनाएं कविता में दौड़ते हुए वंसत को सुनने की टापें सुदंर बिंब है।
लेखक शीबा असल फहमी ने अजय सिंह की कविताओं को हिंदुस्तान में मानवाधिकार उल्लंघन की फैक्टशीट कहा। उन्होंने कहा कि यह बहुत कठिन समय है और एक कवि के लिए तो बहुत ही ज्यादा। उन्होंने कहा कि कवि हमें एक दृष्टि देता है कि किस तरह से लड़ा जा सकता है।
वरिष्ठ कथाकार और समयांतर पत्रिका के संपादक पंकज बिष्ट ने कहा कि अजय घर-परिवार से शुरू करके देश-दुनिया को इसमें समेट लेते हैं। उन्होंने कहा कि कविताओं में बिंब आए हैं, वह कवि की सचेत वैचारिकी का परिचायक है। कोई भी चीज बेवजह नहीं है। युवा आलोचक आशुतोष कुमार ने ‘राष्ट्रपति भवन में सूअर’ कविता के बारे में कहा कि यह इस बात को बताती है कि भारतीय लोकतंत्र में किन लोगों को होना शामिल होना था जिन्हें शामिल नहीं किया गया। अजय की कविता हर तरह के रिश्ते को रेखांकित करती हैं चाहे वे स्त्री के पुरुष के साथ हों, सत्ता प्रतिष्ठान के अपने नागरिकों के साथ या समाज के अपने कलाकारों के साथ। ये अकविता की कविताएं नहीं हैं। अकविता एक पर्सनल व्यक्तिवाद की जमीन होती है, लेकिन अजय सिंह की कविता में ऐसा नहीं है। कवि का सब कुछ नाम व पहचान के साथ कविता में मौजूद है, वह डायरेक्ट है, कोई मुलम्मा नहीं चढ़ाता। सब कुछ साफ है। कविता में प्रेम प्रचुर है। एक पुरुष जो कामना में डूबा हुआ है। एरोटिक प्रेम है, स्त्री को डिटेल में चित्रण। ऐसा पुरुष जो ऐसी स्त्री से प्रेम करता है जो स्वतंत्र हो, किसी भी झांसे में न आए। झिलमिलाती हैं अनंत वासनाएं कविता में दौड़ते हुए वंसत को सुनने की टापें सुदंर बिंब है।
लेखक शीबा असल फहमी ने अजय सिंह की कविताओं को हिंदुस्तान में मानवाधिकार उल्लंघन की फैक्टशीट कहा। उन्होंने कहा कि यह बहुत कठिन समय है और एक कवि के लिए तो बहुत ही ज्यादा। उन्होंने कहा कि कवि हमें एक दृष्टि देता है कि किस तरह से लड़ा जा सकता है।
वरिष्ठ कवि और प्रकाशक असद जैदी ने कहा कि अजय सिंह की कविताएं समकालीन यथार्थ की है। हमारे समय का प्रेम, गुस्सा, निराशा, घृणा- यह इनमें झलकता है। उन्होंने याद दिलाया कि अजय सिंह अपने साथियों के बीच एक सचेतक के रूप में रहे हैं और यही उनकी कविताओं की मूल भावना है। राष्ट्रपति भवन में सूअर कविता में वह इमोशन की रेंज से गुजरते हैं, समकालीन यथार्थ से गुजरते हैं। ब्यौरे और विवरण के बीच के संबंध को समझने की जरूरत है। उन्होंने भी कहा कि इन कविताएं में डाक्यूमेंटेशन की भावना जबर्दस्त है। अब झंडा, नारा जैसे शब्द कविता-कहानी से सेंसर हो गए हैं, ऐसा अजय के यहां नहीं है। जब इन्हें कहना होता है लाल सलाम तो वह कहते हैं। आज के दौर मेंइस रिवायत को जिंदा रखा जरूरी है। उन्होंने इन कविताओं को प्रगतिशील वामपंथी धारा की प्रतिनिधि कविता कहा।
कवि शोभा सिंह ने अजय सिंह की कविताओं को उनका घोषणापत्र बताया। इसमें वह ऐलान करते हैं कि उन्हें किन बातों से नफरत है और किससे प्यार। शोभा सिंह ने कहा कि अजय की कविताएं उनके जीवन की ही तरह अन्याय और जुल्म से टकराने का जोखिम उठाती हैं। उनके मुताबिक कवि का सपना लोकतांत्रिक भारत का सपना है। समकालीन तीसरी दुनिया के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा ने ‘खिलखिल को देखते हुए गुजरात’ कविता का विस्तार से जिक्र करते हुए इसे बेहद महत्वपूर्ण कविता बताया। उन्होंने कहा कि इस कविता में आज के भारत का इतिहास है। इस कविता में जो भावुक अभिव्यक्ति है, वह बहुत महत्वपूर्ण है। यह खिलखिल का जन्म से शुरू होती है, जहां दुनिया को सुंदर बनाने का सपना जन्म लेता है और वहीं सुंदर बनाने का सपना बिगड़ना शुरू हो गया था। गुजरात का जिक्र पूरी उसकी विभीषका के साथ आता है। इस कविता में छोटी बच्ची के जरिए उन्होंने सबको सीख दी है कि गुजरात नरसंहार के दोषियों को कभी नहीं माफ करना चाहिए। सच को सच की तरह कहने का साहस आज के दौर में कम होता जा रहा है, ऐसे में यह संग्रह पूरे जोखिम के साथ यह काम करता है। उन्होंने कहा कि 2002 गुजरात नरसंहार का अजय की कविताओं पर गहरा असर पड़ा है।
कवि इब्बार रबी ने कहा कि अजय सिंह की कविताओं में भावनाओं का ज्वार बहता है। उन्होंने बहुत विस्तार से अजय सिंह की कविताओं की विवेचना करते हुए कहा कि यहां जो व्यक्तिगत है, वही राजनीतिक है। परमाणु विकिरण की विभीषिका को जिस तरह से अजय ने कमल से बरसने वाले पराग से जोड़ा है, वह उनके परिपक्व राजनीतिक कवि का द्योतक है। कविताओं में फिल्मी गानों के इस्तेमाल की इब्बार रब्बी ने प्रशंसा करते हुए कहा कि कवि शून्य में नहीं रच रहा। प्रखर आलोचक संजीव कुमार ने कहा ये कविताएं बहुत डिमांडिंग हैं। ये अंतर-पाठीय है। इन्हें समझने के लिए कई संदर्भों का पता होना चाहिए। इस तरह से ये शिक्षित करती हैं। हिन्दी कविता में पहली बार लोकप्रिय कल्चर के प्रति जबरदस्त आकर्षण दिखा है। संजीव ने कहा कि इन कविताओं की खासियत यह है कि ये जितनी सहजता के साथ लाल किले पर लाल निशान की बात करती है, उतनी ही सहजता से झिलमिलाती अनंत वासनाओं का जिक्र भी करती हैं। राष्ट्रपति भवन में सूअर एक सत्ता के प्रतीक के तौर पर आया है। यह जीवंत मसला है। उन्होंने संग्रह में नुख्तों के सही प्रयोग का जिक्र करते हुए भाषा के प्रति कवि की सजगता का प्रमाण बताया।
फिनलैंड से आए कवि तथा चित्रकार सईद शेख ने कवि अजय सिंह के साथ अपने लगभग 50 साल पुराने रिश्तों का जिक्र करते हुए कहा कि युवाअवस्था में सामंतवाद की गिरफ्त में रहने वाले अजय ने एक बार जब मार्क्सवाद का दामन पकड़ा तो कभी नहीं छोड़ा। वह जीवन के हर क्षेत्र में मार्क्सवाद के प्रवक्ता के तौर पर रहे और कविताओं में भी इसका झंडा बुलंद किए हुए हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार असगर वजाहत ने कहा कि यह संग्रह अजय सिंह की विश्वास को बढ़ाने वाली कवायद का हिस्सा है। दुुनिया में बहुत कुछ खराब है, यह हम सब जानते है, लेकिन उसे बदलना कितना जरूरी है, यह बताती हैं ये कविताएं। लेखक हेमलता महिश्वर ने कहा कि इन कविताओं का दलित दृष्टि से पाठ किया जाना चाहिए। राष्ट्रपति भवन में सूअर पहुंचाने की कल्पना ही ब्राह्मणवादी सोच को चुनौती देने वाली है। वरिष्ठ लेखक-कवि शिवमंगल सिद्धांतकर ने कहा कि अजय सिंह ने अलग ढंग का क्राफ्ट रचा है, जिसकी दाद देनी चाहिए। इसमें बाइसकोप की महत्ता है और कवि की दृष्टि भी वैसी ही है। इस दौर में ऐसी कविताओं की बेहद जरूरत है। युवा कवि रजनी अनुरागी ने इन्हें हिम्मत की कविताएं बताया और इसका व्यापक पाठ करने की जरूरत पर बल दिया। इसमें दलित चेतना और स्वतंत्र नारी की जो ध्वनियां हैं, वे काबिलेतारीफ है। लेखक अरविंद कुमार ने कहा कि ये अभिजात्य वर्ग की रचना को चुनौती देती हैं। आज के दौर में साहित्य में जो विचारशून्यता की स्थिति है, उसे अजय सिंह की कविताएं नकारती हैं। इसलिए इनका विरोध ज्यादा होगा क्योंकि ये यथास्थिति के खिलाफ हैं।
कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि पंकज सिंह, सांसद के.सी. त्यागी, पत्रकार पंकज श्रीवास्तव, डॉ. केदार कुमार, कवि मुकेश मानस, शायर रहमान मुसव्विर, कवि राज वाल्मिकी, लेखक अवतार सिंह, कवि आकांक्षा पारे काशिव, पत्रकार दिवाकर, कथाकार परवेज अहमद, कवि पत्रकार चंद्रभूषण, कवि आर.चेतन क्रांति, पत्रकार मनीषा भल्ला, सामाजिक कार्यकर्ता बेजवाडा विल्सन, धर्मदर्शन, कवि माधवी श्री, शायर हैदर अली, अधिवक्ता दीपक सिंह, आशीष वर्मा, स्वाति सहित बड़ी संख्या में लोगों मौजूद थे।
कार्यक्रम की शुरुआत में साहित्यकार कैलाश वाजपेयी, लेखक तुलसीराम, विजय मोहन सिंह, रंगकर्मी जितेंद्र रघुवंशी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए दो मिनट का मौन रखा गया। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार व संस्कृतिकर्मी भाषा ने किया। स्वागत कवि और शायर मुकुल सरल ने किया।
(भाषा सिंह की फेसबुक वाल से साभार)