अभी कुछ ही दिन बीते हैं जब दुनिया भर में श्रमिकों के अधिकारों और उनके संघर्षों की विरासत को याद करते हुये मई दिवस मनाया गया है। हालांकि देश दुनिया में आज भी ऐसे संस्थानों की कमी नहीं है जहां कर्मचारियों और श्रमिकों को अपने न्यूनतम लोकतांत्रिक अधिकारों को हासिल करने के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है। ऐसे कई उदाहरण दुनिया की सबसे बड़ी जनतांत्रिक व्यवस्था भारत में भी मौजूद हैं। ताजा मामला महालेखाकार विभाग (एजी आफिस) इलाहाबाद का है जहां प्रसिद्ध कवि और गीतकार यश मालवीय के विभाग द्वारा किये जा रहे मानसिक उत्पीड़न की खबरें कुछ स्थानीय अखबारों के जरिये बीते दिनों चर्चा में आयी हैं। इस मामले की पूरी पड़ताल करने पर जो बातें सामने आ रही हैं, वे बेहद चौंकाने वाली हैं। बीते साल 24 फरवरी को घटी एक बहुत ही सामान्य सी घटना इस मामले की वजह बनी। इस दिन महालेखाकार विभाग के कुछ कर्मचारी चार बजे के आस-पास चाय पीने के लिये बाहर गये और थोड़ी देर बाद जब वे अपने काम पर लौटने पहुंचे तो उन्होंने पाया कि आफिस के दरवाजे उनके लिये बंद कर दिये गये हैं। ऐसा विभाग में महालेखाकार प्रथम पी के तिवारी के आदेश पर किया गया था। विभाग के इस मनमाने और तानाशाही कदम के विरोध में सभी कर्मचारियों ने गोलबंद होकर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। जब ये प्रदर्शन उग्र होने लगा तो विभाग में सीनियर एकाउंटेंट के तौर पर काम करने वाले यश मालवीय ने आगे आकर उत्तेजित कर्मचारियों को संबोधित करते हुये उन्हें नियंत्रित करने की कोशिश की। इधर कर्मचारियों को उग्र होता देश महालेखाकार प्रथम पी के तिवारी नदारद हो गये। यह घटना पिछले साल 24 फरवरी की थी और यह प्रदर्शन बगैर किसी अप्रिय घटना के समाप्त हो गया।
इस विरोध प्रदर्शन की प्रतिक्रिया स्वरूप विभाग ने कुछ कर्मचारियों की सेवायें स्थायी तौर पर समाप्त करते हुये यश मालवीय को भी अस्थायी तौर पर बर्खास्त कर दिया। गौर करने वाली बात ये रही कि विभाग की ओर से सेवायें दुबारा बहाल करने संबंधी कोई भी कानूनी और आधिकारिक प्रक्रिया इसके बाद आगे नहीं बढ़ायी गयी और न ही बर्खास्तगी की वजहों के बारे में कोई जानकारी यश मालवीय को दी गयी। तकरीबन एक साल तक विभाग का तानाशाही और रूखा रवैया जारी रहा और इसके बाद यश मालवीय को इस साल 21 मार्च से अपनी सेवायें दुबारा देने का आदेश मिला। इस आदेश के पीछे की मंशा तब साफ हुयी जब यश मालवीय को ये पता चला कि उनकी पदावनति दो पायदान नीचे धकेल दिया गया है और वे विभाग को अपनी सेवायें देना उस पद से शुरू करेंगें जहां वह 29 साल पहले थे। ये सिलसिला यहीं थमा नहीं। यश पर आफिस में कार्य का बोझ बढ़ाकर लगातार मानसिक दबाव बनाया गया। विभाग की नजरों में वे इतना खटकने लगे थे कि उन्हें छोटे-छोटे व्यक्तिगत काम, यहां तक कि पेशाब करने तक की बात आधिकारिक रजिस्टर में दर्ज करनी पड़ती थी। पदावनति, काम की अमानवीय परिस्थितियां और नजरबंदी जैसे हालातों में यश की तबियत खराब हुयी और इस आधार पर उन्होंने मेडिकल अवकाश ले लिया। उनका मेडिकल अवकाश लेना भी विभाग को नागवार गुजरा और विभाग ने उनका सीएनओ परीक्षण करवाया। जब यश के बीमार होने की बात इस परीक्षण में भी सही साबित हुयी तो विभाग ने उन पर नजर रखने का नायाब तरीका निकाला। अब विभाग की ओर से एक पूरी टीम उनका हाल-चाल लेने के बहाने मेंहदौरी स्थित उनके घर पहुंचने लगी। यश मालवीय पर उनकी निगरानी के मकसद से भेजे जाने वाली इस टीम की आवाजाही की खबरें जब स्थानीय अखबारों में प्रकाशित हुयीं तब जाकर इस पूरे मामले का पता चल सका।
यश मालवीय के मानसिक उत्पीड़न का ये मामला महालेखाकार विभाग उत्तर प्रदेश की मनमानी, अलोकतांत्रिक और फासीवादी कार्यशैली का एक छोटा सा उदाहरण है जो यह बताता है कि प्रशासकीय तानाशाही और तुगलकी फरमानों के बीच कैसे सामान्य नागरिक अधिकार और जनतांत्रिक अधिकार बौने हो जाते हैं। ऊपर दिये गये विवरण के आधार पर ये समझना भी कोई मुश्किल काम नहीं है कि महालेखाकार विभाग उत्तर प्रदेश का प्रशासनिक ओहदा यश मालवीय को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाकर काम कर रहा है। अपने गीतों और कविताओं से साहित्य जगत में लगातार सक्रिय रहने वाले यश मालवीय की पक्षधरता किसी से छिपी नहीं है और संभव है कि विभाग को ये बात भी अखर रही हो।
फिलहाल महालेखाकार विभाग इलाहाबाद में कर्मचारियों के लिये काम करने की स्थितियां लगातार खराब हो रही हैं। बीते सालों में महालेखाकार प्रथम पी के तिवारी के मनमाने आदेशों के चलते जिस तरह का फासीवादी और दमनात्मक माहौल आफिस परिसर में तैयार किया गया है, यश मालवीय का मामला उसकी एक बानगी भर है। विभाग में सीनियर अधिकारियों द्वारा कर्मचारियों से अभद्र भाषा में बात करना, छुट्टी और मेडिकल सुविधाओं समेत उनके सामान्य लोकतांत्रिक अधिकारों से उन्हें वंचित रखना बेहद आम है। विभाग में बहुत से कर्मचारियों को शनिवार को भी काम पर बुलाया जा रहा है। मनमाने आदेशों के चलते बर्खास्त हुये कर्मचारियों के स्थान पर नये कर्मचारियों की भर्ती नहीं की गयी है जिससे स्थितियां और खराब होती गयी हैं। यश मालवीय बताते हैं कि सीनियर अधिकारियों और प्रशासन का खौफ विभाग में इस कदर व्याप्त है कि उनके इस साल 21मार्च को आफिस में दुबारा पहुंचने पर उनके साथी कर्मचारी उनसे नमस्ते कहने और उनका हाल-चाल लेने के लिये उनसे मिलने से कतरा रहे थे और मोबाइल फोन के संदेशों के जरिये उनसे बात कर रहे थे।
यूं तो महालेखाकार विभाग उत्तर प्रदेश अपनी वेबसाइट पर खुद को ‘लोकतंत्र के एक स्तंभ के रूप में प्रयत्नशील संस्था’ बताता है, लेकिन सच ये है कि विभाग में न्यूनतम स्तर का भी आतंरिक लोकतंत्र नहीं है। इधर विभाग द्वारा की जा रही नजरबंदी और मानसिक उत्पीड़न के चलते उच्च रक्त चाप से पीड़ित यश मालवीय का स्वास्थ्य भी लगातार बिगड़ रहा है। उनके मानसिक उत्पीड़न के खिलाफ इलाहाबाद के साहित्य जगत ने भी आवाज उठानी शुरू कर दी है और उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में महालेखाकार विभाग उत्तर प्रदेश की इस तानाशाही और फासीवादी कार्यशैली के प्रति विरोध और तीखा होगा।
- अभिषेक श्रीवास्तव(जनज्वार से साभार)
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दफ़्तर से लेनी है छुट्टी
कुछ तो जी लें बिला वजह
सुबह देर से
सो कर जागें
सूरज के साथ
नहीं भागें
कोई अच्छी पुस्तक पढ़ लें
फ़ाइल की भूलकर कलह
घड़ी–घड़ी
चाय पियें ताजी
सारा दिन
केवल गपबाजी
जमुहायें आलस में भरकर
बेमतलब की करें जिरह
मिले पुरानी
कोई चिठ्ठी
मुन्ने की
मीठी सी मिठ्ठी
नेह तुम्हारा क्षण–क्षण बरसे
सावन के मेघ की तरह
सुबह देर से
सो कर जागें
सूरज के साथ
नहीं भागें
कोई अच्छी पुस्तक पढ़ लें
फ़ाइल की भूलकर कलह
बिखरायें
तिनकों पर तिनके
खुश हो लें
बार–बार बिन के
चादर से एक सूत खींचे
पास–पास लगायें गिरह
कुछ आड़ी तिरछी
रेखाएँ
कागज़ पर
खिचाएँ–मिटाएँ
होठों से होठों पर लिख दें
फुर्सत है साँझ औ' सुबह
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विष बुझी हवाएं
नीम अंधेरा
कड़वी चुप्पी
औं' विष बुझी हवाएँ
हुई कसैली
सद्भावों की
वह अनमोल कथाएँ
बचे बाढ़ से पिछली बरखा
सूखे में ही डूबे
'कोमा' में आए सपनों के
धरे रहे मंसूबे
फिसलन वाली
कीचड़–काई
ठगी ठगी सुविधाएँ
मन की उथली
छिछली नदिया
की अपनी सीमाएँ
यह आदिम आतंक डंक सा
घायल हुए परस्पर
अलग अलग कमरों में पूजे
अपने–अपने ईश्वर
चौराहों पर
सिर धुनती हैं
परसों की अफ़वाहें
आज अचानक
जाग उठी हैं
कल वाली हत्याएँ
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