अशोक की कविता में बेचैनी भी एक मूल्य की तरह उभरती है। हिंदी कविता में उसका चेहरा बेशिकन चेहरा नहीं है। वहां गहरे स्याह साए और एक जलती हुई उम्मीद है। वो ख़ुद से जिरह करते हुए उस जिरह की सामाजिकता को बहुत ख़ामोशी से अंधेरों के माथे पर उकेरता हुआ भी चलता है। विचार जब प्रहसन बन चले हैं, अशोक जैसे कवि उनकी संजीदगी को अपने जीवन-संघर्षों की उमस भरी उर्वरता में बो देते हैं। यहां दी जा रही कविता ख़ुद की तलाश में मिले घावों से भरी हुई है। आत्म को सुन्दर समाज के स्वप्न में खोजना ही आत्मखोज है, जटिल और सुन्दर। मैं ऐसी कविता और कवियों में अपने जीवन संघर्ष भी तलाश पाता हूं। अकेले की कला के विरुद्ध यह जीवट भरी सामाजिक कला है, जिससे हमारा तादात्म्य सहज ही स्थापित हो जाता है। इस कविता के लिए अनुनाद का आभार स्वीकार करो कामरेड।
(एक)
आधी रात बाक़ी है जैसे आधी उम्र बाक़ी है
आधा कर्ज बाक़ी है आधी नौकरी आधी उम्मीदें अभी बाक़ी हैं
पता नहीं आधा भी बचा है कि नहीं जीवन
अब भी अधूरे मन से लौट आता हूँ रोज़ शाम
रोज़ सुबह जाता हूँ तो अधूरे मन से ही
जो अधूरा है उसे पूरा कहके ख़ुश होने का हुनर बाक़ी है अभी
अधूरे नाम से पुकारता हूँ जिसे प्यार का नाम समझता है वह उसे!
एक अधूरे तानाशाह के फरमानों के आगे झुकता हूँ आधा
एक अधूरे प्रेम में डूबता हूँ कमर तक
(दो)
वह जो चल रहा है मेरे क़दमों से मैं नहीं हूँ
हवा में धूल की तरह चला आया कोई
कोई पानी में चला आया मीन की तरह
कोई सब्जियों में हरे कीट की तरह
और इस तरह बना एक जीवन भरा पूरा
पाँचो तत्व सो रहे हैं जब गहरी नींद में
तो जो गिन रहा है सड़कों पर हरे पेड़
वह मैं नहीं हूँ
(तीन)
इतनी ऊँची कहाँ है मेरी आवाज़
एक कमज़ोर आदमी देर तक घूरता है कोई तो डर जाता हूँ
कोई लाठी पटकता है जोर से तो अपनी पीठ सहलाता हूँ
शराबियों तक से बच के निकलता हूँ
कोई प्रेम से देखे तो सोचते हुए भूल जाता हूँ मुस्कुराना
दफ्तर में मंदिर की तरह जाता हूँ
मंदिर में दफ्तर की तरह
अभी अभी जो सुनी मेरी आवाज़ आपने और भयभीत हुए
वह मेरे भय की आवाज़ है बंदानवाज़
(चार)
कौन करता मेरा ज़िक्र?
मैं इस देश का एक अदना सा वोटर
एक नीला निशान मेरा हासिल है
मैं इतिहास में दर्ज होने की इच्छाओं के साथ जी तो सकता हूँ
मरना मुझे परिवार के शज़रे में शामिल रहने की इच्छा के साथ ही है
किसी ने कहा प्रेम तो मैंने परिवार सुना
किसी ने क्रान्ति कहा तो नौकरी सुना मैंने
मैंने हर बार बोलने से पहले सोचा देर तक
और बोलने के बाद शर्मिन्दा हुआ
मैंने मोमबत्तियाँ जलाईं, तालियाँ बजाईं
गया जुलूस में जंतर मंतर गया कुर्सियां कम पड़ीं तो खड़ा रहा सबसे पीछे हाल में
और रात होने से पहले घर लौट आया
वह जो अखबार के पन्ने में भीड़ थी
जो अधूरा सा चित्र उसमें वह मेरा है
सिर्फ इतने के लिए भी चाय पिला सकता हूँ आपको
कमीज़ साफ़ होती तो सिगरेट के लिए भी पूछता
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रुकिए..लिख तो दूँ कि धूम्रपान हानिकारक है स्वास्थ्य के लिए